मलेरिया
मलेरिया (Malaria)
मलेरिया सदियों से मानव का एक विनाशकारी रोग रहा है। विज्ञान की प्रगति के बावजूद आज भी संसार में मलेरिया से प्रतिवर्ष करोड़ो लोग मरते हैं । प्लाज्मोडियम परजीवी की वजह से होने वाला रोग जो संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया है कि 2013 में 19 करोड़ 80 लाख से भी ज्यादा लोगों को मलेरिया हुआ और दस बिमारी ने 5 लाख 84 हजार लोगों की जान ले ली, इसमें 80% बच्चें हैं जिनकी उम्र 5 साल से कम थी।
इतिहास (History)-
सदियो से मलेरिया एक विनाशकारी रोग रहा है इसके कारण देश बर्बाद हुआ है तथा देशो की प्रगति रुकी हुई है ग्रीक एवम रोमन साम्राज्यो के पतन में इसका योगदान रहा है इस प्रकार इसने संसार के इतिहास निर्माण को प्रभावित किया है |विज्ञानं की प्रगति के बावजूद आज भी संसार में मलेरिया से प्रतिवर्ष करोडो व्यक्ति मर जा है ।अकेले भारत में प्रतिवर्ष 6 से 8 लाख मनुष्य इसके शिकार हो जाते है ये इतनी जल्दी फैलता है की प्रभावित क्षेत्र की अधिकांश जनता इससे ग्रसित हो जाते है मृत्यु से बच जाने वाले रोगी भी बहुत कमजोर हो जाते है बच्चो की मानसिक एवम शारीरिक वृद्धि कम हो जाती है इस प्रकार पूरे समाज की उन्नति पर बुरा प्रभाव पड़ता
19 वी सदी के मध्य तक लोग समझते रहे की मलेरिया रोग दलदली स्थानों से निकली गंदगी वह नम हवा के कारण होता है इसका मलेरिया (Mal = गंदगी + Air = हवा ) नाम इसीलिए रखा गया मच्छर से इसके सम्बन्ध को लांसिन्सी 1717 ने पहले जाना बाद में लैबरान 1880 ने पता लगया की मनुष्य में मलेरिया प्लाज्मोडियम के संक्रमण से होता है इन्होंने ही सबसे पहले प्लाज्मोडियम को मनुष्य के लाल रुधिर में देखा । गाल्जी ने प्ला मलेरी की कुछ प्रावस्थाओं को मनुष्य के लाल रुधिराणुओं में देखकर लैबरान की खोज का समर्थन किया गासी तथा उनके सहयोगियों ने सर्वप्रथम एनोफेलीज के आमाशय में प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र का वर्णन किया तथा ब्रे ने प्लाज्मोडियम की विविध जातियो की प्री एवम एक्सो अरिथ्रोसाइटिक चक्रो की विभिन्न प्रावस्थाए देखी |
विश्व मलेरिया दिवस (World Malaria Day)
25 अप्रैल को राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश ने 2007 में मलेरिया जागरूकता दिवस के रूप मे नामांकित किया था। मलेरिया एक जटिल बीमारी के खिलाफ भारत का संघर्ष – 23 अप्रैल 2010 यद्यपि भारत में मलेरिया का उन्मूलन लगभग पूर्ण हो चुका था, 1970 के दशक के उत्तरार्ध में यह अधिक तीव्रता से लौट आया। आज मलेरिया तथा ज्ञात कारणों से होने वाली अन्य बिमारियाँ भारत में मृत्यु, विकलांगता तथा आर्थिक नुकसान का बड़ा कारण है, खासकर गरीबो में 2009 में भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा ने करीब 15 लाख मलेरिया की घटनाओं की जानकारी दी। इनमें से करीब आधी घटनाओं की वजह घातक पी० फेल्सिपेरम विषाणु था। क्योंकि एक बड़ी संख्या में मरीज सरकारी स्वास्थ्य सेवा का लाभ न लेकर निजी स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं ।
भारत में मलेरिया नियत्रंण (Malaria control in India) –
भारत मलेरिया के लिए रोग स्थानिक तथा विभिन्न हिस्सों से सक्रिय संचरण प्रकाश में आता रहा है । देश की लगभग 85% आबादी मलेरिया के जोखिम वाले क्षेत्रों में निवास करती है। भारत में आता रहा है। देश की लगभग 85% आबादी मलेरिया के जोखिम वाले क्षेत्रों म निवास करती है। भारत में मलेरिया की अनुमानत 65% घटनाएँ उड़ीसा, झारखंण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा पूर्वोत्तर क्षेत्रों से प्रकाश में आती है। मलेरिया नियत्रंण गतिविधिया को निम्न चरणों में व्यक्त किया जा सकता है ।
शहरी क्षेत्रों में मलेरिया नियत्रंण के लिए वर्ष 1971 में 40,000 से अधिक आबादी वाले शहरों में शहर मलेरिया योजना (UMS) प्रारम्भ की गई । आज भारत में 19 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों 131 नगरों की लगभग 130.3 मिलियन आबादी के लिए यह योजना कार्यरत है।
मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रणनीति योजना- केन्द्रिय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे० पी० नड्डा ने 12 जुलाई 2017 को एक कार्यक्रम में मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रणनीति योजना (2017 – 22 ) का शुभारम्भ किया है। इस योजना में आगामी 5 वर्षों के लिए देश के विभिन्न भागो में मलेरिया की स्थिति के आधार पर समाप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। विश्वभर में मलेरिया परजीवी की चार प्रजातियां पाई जाती है जो विभिन्न प्रकार के मलेरिया उत्पन्न करते है | यह प्रजातियां है –
प्लाज्मोडियम वाइवेक्स
प्लाज्मोडियम ओवेल
प्लाज्मोडियम मलेरियाई
मलेरिया की उपरोक्त चार प्रजातियों में से प्लाज्मोडियम वाइवेक्स विश्व में सर्वाधिक भू- भागो तथा सर्वाधिक लोगो में मलेरिया ज्वर का कारण है ।
इसके अतिरिक्त मलेरिया के २५-३०% रोगियों में रोग का कारण प्लाज्मोडियम फैल्सीपैरम होता है । इसमें अधिकांश रोगी बेहोश हो जाते है और यदि सही उपचार न मिले तो जान को खतरा हो सकता है । केवल भारतवर्ष में लगभग १% मलेरिया रोगियों में रोग का कारण प्लाज्मोडियम मलेरियाई होता है यह प्रजाति केवल भारतवर्ष में ही पाई जाती है |
A-अलैंगिक अवस्था (Asexual Phase)
जो मनुष्य की यकृत कोशाओं व रक्त में पूरी होती है ।
B-लैंगिक अवस्था (Sexual Phase)
मलेरिया परजीवी का यह जीवन चक्र मच्छर के आमाशय व देहगुहा में पूरा होता है ।
C-अलैंगिक अवस्था (Asextual Phase)
मनुष्य में मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र संक्रमित मच्छर के काटने से प्रारम्भ होता है । यह निम्न प्रकार है- 1
यकृत अवस्था इसे एक्सो इरिथ्रोसिटीक साइजोगोनि के नाम से जाना जाता है ।
R.B.C के अंदर मलेरिया परजीवी का विकास इसे इरिथ्रोसिटीक साइजोगोनी जाना जाता है ।
गैमीटोगोनि |
यकृत कोशाओं के अंदर मलेरिया परजीवी का विकास |
लाल रक्त कणिकाओं के अंदर मलेरिया परजीवी का विकास – संक्रमित मच्छर द्वारा किसी मनुष्य को काटने पर मच्छर की लार से निकल कर स्पोरोजॉइट्स मनुष्य के रक्त में प्रवेश कर जाते है । यकृत कोशाओं में स्पोरोजॉइट्स का विकास होता है पहले तो इनमे से कुछ हिपेटिक शायजन्त में बदल जाते है । यकृत ऊतकों में निष्क्रिय पड़े हिपेटिक शायजन्त काफी समय बाद सक्रिय होकर फटने की प्रक्रिया को प्री – इरिथ्रोसिटीक साइजोगोनी कहते है |
लाल रक्त कणिकाओं के अंदर मलेरिया परजीवी का विकास (Development of Malaria Parasite in R B C)- यकृत में शायजाट के फटने से मुक्त मीरोजाइट्स में से काफी तो नष्ट हो जाते है जो बचते है वे RBC की सतह पर ग्राही अंगो की सहायता से चिपक जाते है । इनमे से प्रत्येक RBC में एक मीरोजोयट उसकी भित्ति को भेदकर अंदर प्रवेश कर जाता है । RBC में उपस्थित मलेरिया परजीवी पहले ट्रोफोजायट में परिवर्तन होता है फिर रिंग ट्रोफोजायट में परिवर्तित हो जाता है एक चक्र में लगा समय प्रत्येक प्रजाति के लिए अलग अलग और निश्चित होता है |
गैमीटोगोनी
मलेरिया परजीवी के चक्र के समय रिंग ट्रोफोजायट चक्र के बजाय गैमीटोसाइट्स ही मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र को आगे बढ़ाते है यह गैमीटोसाइट्स धीरे धीरे कुछ समय में मादा तथा नर गैमीटोसाइट्स में विभेदित हो जाते है । इसके बाद की अवस्था मच्छर में पूरी होती है जब मादा ऐनोफलीज मच्छर ऐसे रोगी को गैमीटोसाइट्स है तो यह गैमीटोसाइट उसकी लार के साथ आमाशय में जाता है |
लैंगिक अवस्था
मलेरिया परजीवी का लैगिंक जीवन चक्र मच्छर में पूरा होता है जिसे स्पोरोगोनी कहते है मादा एनोफ्लिज मच्छर द्वारा मलेरिया से संक्रमित रोगी को काटने पर रोगी के रक्त में उपस्थित गैमीटोसाइट मच्छर की लार द्वारा उसके आमाशय तक पहुच जाते है । मच्छर के अमाशय में यह मैक्रोगेमीटोसाइट वह मैक्रोगेमीटोसाइट्स क्रमशः मैक्रोगेमीट तथा मैक्रोगेमीट के रूप में विकसित हो जाते है । इसके अतिरिक्त मच्छर के आमाशय में ही नर तथा मादा गैमीट का और विकास होता है तत्पश्चात मादा गैमीट के चारो ओर चिपके हुए इन नर गैमिट्स में से कोई एक मादा गैमीट की भित्ति को भेज देता है और मादा गैमीट के अंदर प्रवेश कर जाता है इसके पश्चात् नर गैमिट तथा मादा गैमीट का जीवद्रव्य आपस में मिल जाता है | इस क्रिया को निषेचन कहते है नर तथा मादा गैमीट के निषेचन द्वारा एक भूर्ण कोशिका की रचना होती है यह भूर्ण कोशिका गतिशील नहीं होती है और मच्छर के आमाशय में धीरे -धीरे इस भूर्ण कोशिका का विकास होता है और 24 घंटे के अंदर यह एक गतिशील भूर्ण कोशिका में परिवर्तित हो जाता है इस गतिशील भूर्ण कोशिका को ओकिनेट कहते है । ओकिनेट आमाशय की भीतरी सतह को भेदकर उसकी बाहरी सतह तक पहुच जाता है और वहाँ अनेक पुटिका बना देता है इस प्रक्रिया को एनसिस्टशन कहते है मच्छर के अमाशय की बाहरी सतह पर बने हुए सिस्टो में ओकिनेट होते है यह स्पोरोजॉइट्स मच्छर की देहगुहा में स्पोरोजॉइट्स मच्छर की लार ग्रंथियों तक पहुंच जाते है
इस प्रक्रिया को स्पोरोगोनी को पूर्ण होने में १-२ सप्ताह का समय लग जाता है यह समय ब्राह उद्भवन अवधी कहते है इसके पूरा होने के बाद मच्छर की लार में अनेक अपुरोजेट्स होते है यह मच्छर संक्रामक होते है जब यह मच्छर किसी मनुष्य को काटते है तो अपनी लार उस मनुष्य के रक्त में छोड़ देते है और मनुष्य में मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र प्रारम्भ हो जाता है अर्थात मनुष्य मलेरिया से ग्रसित हो जाता है |
मलेरिया के रोगी का नैदानिक उपागम (Clinical Approach to the patient of Malaria)- मलेरिया रोग के लक्षण बड़े स्पष्ट होते है फिर भी नैदानिक उपागम द्वारा रोग का ठीक से पता लगाना आवश्यक है |
नैदानिक इतिहास (Clinical History)- निदान से सम्बंधित लक्षण इस प्रकार से है –
ज्वर (Fever)- रोगी को ठण्ड लगकर बुखार आता है साथ जोर से कपकपी होती है ऐसा लगता है की जड़ पेट से उठ रहा है |
सिरदर्द (Headache) – मलेरिया में तीव्र सिरदर्द होता है सिरदर्द के साथ साथ रोगी को वमन हु अधिक होती है
बेहोशी (Coma)- कुछ रोगी अधिक ज्वर के कारण बेहोश हो जाते है जिन रोगियों में मलेरिया रोग का कारण पी. फिल्सीपैरम होता है उनके बेहोश होने की संभावना बहुत अधिक होती है इन रोगियों को तुरंत अस्पताल में भर्ती करके उपचार की आवश्यकता होती है |
तिल्ली का बाद जाना (Spleenomegaly)- मलेरिया के कुछ रोगियों में तिल्ली काफी बढ़ जाती है ।
मलेरिया से सम्बंधित कारक (factors Associated with Malaria)
उम्र (Age)- मलेरिया रोग सभी आयु वर्ग को प्रभावित करता है नवजात शिशु पी. फैल्सीपैरम से बहुत काम प्रभावित होते है क्योंकि इनमे फीटल हीमोग्लोबिन की मात्रा अधिक होती है |
लिंग (Sex)- स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष मलेरिया रोग से अधिक प्रभावित होते है क्योंकि यह घर के बाहार ऐसे स्थान पर रहते है जहा मच्छर अधिक रहते है ।
सामजिक आर्थिक स्तर (Socio-economic status) – सामाजिक आर्थिक स्तर भी एक प्रमुख करक है जैसे जैसे सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधरती है मलेरिया की व्यापकता कम होती जाती है विकसित देशो में मलेरिया का प्रकोप बहुत कम होना इस तथ्य का प्रमाण है |
गर्भावस्था (Pregnancy) – गर्भावस्था के समय मलेरिया की संभावना बढ़ जाती है साथ ही गर्भवस्था में होने वाला मलेरिया रोगी के लिए अधिक समस्या उत्पन्न करता है कभी कभी तो गर्भस्थ शिशु की मृत्यु भी हो जाती है ।
व्यवसाय (Occupation) – यह रोग खेतो तथा जंगलो में काम करने वाले व्यक्तियों को अधिक होता है अर्थात किसानों व मजदूरो को इसके होने की संभावना अधिक होती है ।
घर (Home)- रहने के स्थान मलेरिया की व्यापकता को बहुत प्रभावित करता है जिन घरो में प्रकाश नही पहुचता और हवादार नहीं होते उनमे मच्छर आसानी से छिपे रहते है और वहाँ पर रहने वाले व्यक्ति मलेरिया से प्रभावित होते है ।
तापमान (Temperature)- वातावरण का तापमान मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र को प्रभावित करता है ।
मौसम (Season) – बरसात का मौसम मलेरिया प्रभावी मौसम है इस मौसम में मलेरिया रोग प्रमुख रूप से फैलता है ।
ऊँचाई (Height)- समुद्रतल से लेकर २००० मीटर की उचाई तक एनोफ्लिज मच्छर पाया जाता है अतः २००० मीटर से अधिक उचाई पर रहने वालो को मलेरिया नही होती है |
वर्षा (Rain)- बरसात भी मलेरिया रोग का प्रमुख कारक है जिन स्थानों पर अधिक बरसात होती है वहाँ पानी के भाव के कारण अधिक मच्छर उतपन्न होते है और वहाँ पर मलेरिया का प्रकोप भी अधिक होता है|
मलेरिया के नैदानिक लक्षण (Clinical Features Of Maleriya)
प्रारूपिक मलेरिया रोग के प्रमुख लक्षण निम्नवत है-
कपकपी के साथ ठण्ड
तीव्र ज्वर
अत्यधिक पसीना आना
कपकपी और ठंड की अवस्था – यह रोग की प्रारम्भिक अवस्था है इसमें रोगी को कमजोरी सी लगती है सिरदर्द करता है तथा वमन का अनुभव होता है रोगी को ऐसा लगता है की पेट में से ठण्ड निकल रही हो और जोर की कपकपी होती है प्रारम्भ में हाथ पैर ठन्डे हो जाते है जैसे जैसे तापमान बढ़ता है हाथ पैर गर्म ठन्डे हो जाते है जैसे जैसे तापमान बढ़ता है इस अवस्था में यदि रक्त का परिलक्षण किया जाये तो मलेरिया परजीवी देखे जा सकते है ।
तीव्र ज्वर (Heigh Grade fever or hot stage) – इस अवस्था में शरीर बहुत गर्म हो जाता है रोगी को ऐसा लगता है की जैसे सारे शरीर में आग लग रही है गला सुख रहा है उलटी आती है और सर में बहु दर्द होता है यहाँ तक की हड्डियों और जोड़ो में भी दर्द होता I बच्चो में ज्वर समय मिर्गी के झटके आने लगते है लाक्षणिक उपचार से यह झटके ठीक हो जाता हैं और बुखार उतर जाने पर झटके नहीं आते और किसी प्रकार की जटिलता भी नही रहती है ।
तीव्र पसीना आना (Profuse Sweating ) – चार से छः घंटे तक तीव्र ज्वर रहने के बाद रोगी को बहु तेज पसीना आता है शरीर का तापमान कम होना आरम्भ होता है और धीरे धीरे सामान्य हो जाता है इस अवस्था मे आते आते रोगी काफी आराम अनुभव करता है और इस अवस्था में रोगी अक्सर सो जाता है | मस्तिष्क का मलेरिया पी. फैल्सीपैरम नामक मलेरिया परजीवी के कारण होने वाला मलेरिया मस्तिष्क को सर्वाधिक प्रभावित करता है इसलिए इसे मस्तिष्क मलेरिया कहते है इसमें रोगी अधिकांश बेहोश हो जाता है रोगी को ज्वर आता है परन्तु प्रारूपिक मलेरिया की भाति निश्चित अंतराल पर नही आता है । इन रोगियों में से अधिकांश को पीलिया हो जाता है यकृत तथा तिल्ली आकार में बढ़ जाते है साथ ही बहुत दर्द भी करते है इन रोगियों में रक्ताल्पता सामान्य मलेरिया की तुलना में अधिक शीघ्रता से होती है ।
मलेरिया रोग की जटिलताएं- मलेरिया रोग से होने वाली जटिलताएं निम्न प्रकार है
रक्ताल्पता- मनुष्य में मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र लाल रक्त कणिकाओं तथा यकृत कोशाओं में पूरा होता है मलेरिया परजीवी से प्रभावित होने वाली नष्ट हो जाती है इनका हीमोग्लोबिन परजीवी द्वारा उपयोग में ले लिया जाता है फलस्वरूप रोगी अनीमिया से ग्रसित हो जाते है ।
पीलिया- मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र यकृत कोशाओं में प्रारम्भ होता है यकृत कोशाएं प्रभावित होने पर बिलीरुबिन उत्सर्जित नहीं हो पाता है और रोगी को पीलिया हो जाता है इसके अतिरिक्त RBC के हीमोग्लोबिन बिलीरुबिन में बदल जाता है और पीलिया का कारण बनता है |
कालापानी ज्वर- यह जटिलता काफी लंबे समय तक पी. फैल्सीपैरम से प्रभावित रोगियों में होती है उन रोगियों में इस प्रकार की जटिलता और अधिक होती है जिनकी RBC में G6PD की कमी हो जाती है । इन जटिलता में अचानक बड़ी संख्या में RBC का विघटन आरम्भ हो जाता है विघटन के कारण उत्पन्न उत्पाद मूत्र के साथ उत्सर्जित होते है जिससे मूत्र का रंग गहरा लाल या काला हो जाता है इसीलिए इसे कालापानी ज्वर कहते है |
रक्त ग्लूकोज के स्तर में कमी – हाइपोग्लाइसीमिया एक गंभीर जटिलता है जो रोगी इस जटिलता से ग्रसित हो जाते है उनका प्रज्ञान बहुत ख़राब होता है हाइपोग्लाइसीमिया निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है यकृत के अंदर ग्लूकोज के निर्माण की क्रिया का बंद हो जाना इन्सुलिन की अधिकता यह स्थिति गर्भावस्था संक्रमण में अधिक होती है इसके फलस्वरूप रोगी में ग्लूकोज की कमी हो जाती है रोगी की हदयगति बढ़ जाती है रोंगटे खड़े हो जाते है |
बेहोशी- पी. फैल्सीपैरम नामक मलेरिया परजीवी से संक्रमित रोगी अधिकांश बेहोशी का शिकार होते है सामान्य मलेरिया में भी तेज बुखार के कारण रोगी बेहोश हो जाते है सामान्य मलेरिया में भी तेज बुखार के कारण रोगी बेहोश हो जाते है इन रोगियों को बार बार मिर्गी के झटके आते है
निमोनिया- अधिक ज्वर में बेहोशी के कारण पेय पदार्थ या मुह में आने वाली लार श्वसन मार्ग से होते हुए फेफड़ो तक पहुँच जाते है और रोगी में चूषण निमोनिया उत्पन्न करते है फुस्फुस शोफ के कारण निमोनिया की तीव्रता और अधिक बढ़ जाती है ।
व्रक्क विकार- मलेरिया का बार बार संक्रमण होने से प्रतिरक्षा जटिलताएँ उत्पन्न होती है जो व्रक्क विकार का कारण बनती है । व्रक्क विकार मुख्यतः पी. मलेरियाई के कारण उतपन्न मलेरिया में होते है इन रोगियों का मूत्र उत्सर्जन कम हो जाता है डायलिसिस से प्राग्ज्ञान अच्छा होता है ।
अतिसार- मलेरिया के कुछ रोगियों को तीव्र दस्त होते है निश्चित कारण का पता नहीं होता है । रक्तचाप का गिरना- लंबे समय तक बीमार रहने पर रोगी बहुत कमजोर हो जाता है रक्तचाप बहुत कम हो जाता है और रोगी शॉक में चला जाता है
मेटाबोलिक एसिडोसिस – तीव्र मलेरिया से ग्रसित रोगियों में ग्लूकोज की कमी के कारण रोगी के ऊतकों में अवायुवीय ग्लाइकोलिसिस होता है इसके फलस्वरूप लैक्टिक एसिड उत्पन्न होता जो लैक्टिक एसिडोसिस या मेटाबोलिक एसिडोसिस उत्पन्न करता है कई एक रोगियों की हदय गति बंद जाती है इनका प्राग्ज्ञान बहुत ख़राब होता है ।
रक्तस्त्राव- पी. फैल्सीपैरम से प्रभावित रोगियों में जो लंबे समय तक रोग ग्रस्त बने रहते है
प्लेटलेट्स की संख्या थोड़ी सी कम हो जाती है साथ ही इनमे एनीमिया तो होती है इन रोगियों में रक्तस्त्राव की सम्भावना बहुत अधिक होती है रक्तस्त्राव मूत्र के साथ हो सकता है नासमार्ग से हो सकता है या फिर शरीर के किसी अन्य अंग से हो सकता है मलेरिया के रोगी का प्रयोगशाला परिक्षण |
रक्त परिक्षण – मलेरिया के रोगी के निश्चित निदान के लिए उसका रक्त परिक्षण करते है ।
ब्लड फिल्म- यह परिक्षण मलेरिया रोग निदान हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिक्षण है ब्लड फिल्म बनाने के लिए नीडिल प्रिक द्वारा रोगी का ब्लड एक साफ स्लाइड पर लेकर फिल्म बनाई जाती है कोशिका यह होनी चाहिए की ब्लड फिल्म के लिए ब्लड उस समय लिया जाये जब रोगी को ज्वर चढ़ा हो इससे परिक्षण की सुग्रहिकता काफी बढ़ जाती है ब्लड फ़िल्म बनाने के बाद उसे रोमनोंव्स्की स्टेन द्वारा स्टेन करते है इसके बाद सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इस स्टेन्ड फ़िल्म का परिक्षण किया जाता है ।
मलेरिया रोग के निदान हेतु दो प्रकार की ब्लड फ़िल्म बनाई जाती है
मोटी ब्लड फ़िल्म
पतली ब्लड फ़िल्म
मोटी ब्लड फ़िल्म- मोटी ब्लड फ़िल्म असमान मोटाई की बनाई जाती है अर्थात किसी स्थान पर फ़िल्म मोटी होती है तो कही पतली फिर इस फ़िल्म को सुखाकर स्टेन कर लेते है ।
फलस्वरूप इस प्रकार की फ़िल्म में मलेरिया परजीवी की संख्या पतली फ़िल्म की अपेक्षा ३०-४० गुना बढ़ जाती है इस प्रकार परिक्षण की सुग्रहिकता बढ़ जाती है और रोग के निदान में आसानी हो जाती है ।
सूक्ष्मदर्शी द्वारा ब्लड फ़िल्म के परिक्षण के समय WBC तथा मलेरिया परजीवी दोनों की गिनती करते है कभी कभी इसके अंदर मलेरिया पिग्मेंट मिलता है जो मलेरिया का प्रमाण है । किसी भी मोटी ब्लड फ़िल्म को निगेटिव बनाने के लिए उस स्लाइड के १००-२०० हाई पवार फिल्ड्स के मलेरिया परजीवी को देखना चाहिए या फिर एक अन्य ब्लूडफिल्म लेकर उसे एक्रिडिन से स्टेन का परिक्षण करना चाहिए |
पतली ब्लड फिल्म – यह ब्लड फ़िल्म एक सामान मोटाई की बनाई जाती है इस ब्लड फ़िल्म को पहले अच्छे प्रकार से सुखाते है फिर निर्जलीय मिथाइल अल्कोहल में फिक्स कर देते है तत्पश्चात रोमनोव्स्की स्टेन में स्टेन करते है इसके बाद सूक्ष्मदर्शी द्वारा ब्लड फ़िल्म का परिक्षण किया जाता है इस प्रकार की ब्लड फ़िल्म का एक लाभ यह है कि इसमें मलेरिया परजीवी की सभी प्रजातियां स्पष्ट होती है ।
भारतवर्ष में P.Falciparum & P. Vivax दो प्रमुख प्रजातियाँ है जिनका इस परीक्षण द्वारा पता लगया जाता है।
हीमोग्लोबिन- सामान्य हीमोग्लोबिन इस प्रकार होता है स्त्रियों में 12% पुरुषो में 15% मलेरिया के रोगी में हो जाता है और P. Falciparum के कारण होने वाले मलेरिया के रोगी में हु तेजी से कम हो जाती है अर्थात रक्त की बहुत कमी आ जाती है ।
जी. बी. पी.- मलेरिया के रोगी की ब्लड फ़िल्म के परिक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है कि उसमे होने वाली रक्तक्षीणता नोमोक्रमिक (Nor Mocytic & Normochromic) प्रकार है |
टी. एल. सी.- मलेरिया के साथ यदि कोई अन्य संक्रमण नहीं हो तो WBC की संख्या सामान्य अथवा सामान्य से काम होती है मलेरिया परजीवी के कारण की संख्या बढ़ती WBC नहीं है । ई. एस. आर- मलेरिया के रोगियों का ESR बहुत बढ़ जाता है ESR
सीरम बिलीरुबिन – तीव्र मलेरिया में जब RBC का अपघटन होता है सीरम बिलीरुबिन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है |
गामा ग्लोबुलिन- मलेरिया के रोगियों में गामा ग्लोबुलिन का स्तर बढ़ जाता है ।
प्लेटलेट्स की संख्या – तीव्र मलेरिया में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है और रोगी में रक्तस्त्राव की संभावना बढ़ जाती है |