प्रोस्टेट बढ़ना – (Enlarged Prostate)
प्रोस्टेट बढ़ना या बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया क्या है?
प्रोस्टेट शरीर में मौजूद एक ग्रंथि होती है, जिसको ‘पौरुष ग्रंथि’ भी कहा जाता है। यह एक द्रव पदार्थ का उत्पादन करती है, जो स्खलन के दौरान शुक्राणुओं को ले जाता है। पौरुष ग्रंथि मूत्रमार्ग के चारों ओर होती है (मूत्रमार्ग वह ट्यूब होती है, जो पेशाब को शरीर से बाहर निकालती है)। पौरुष ग्रंथि के बढ़ने का मतलब होता है कि यह ग्रंथि अधिक विकसित हो गई है।
अधिक उम्र होने पर लगभग सभी पुरूषों की पौरुष ग्रंथि का आकार बढ़ने लगता है। प्रोस्टेट का आकार बढ़ने से मूत्राशय से मूत्र के प्रवाह को अवरुद्ध करने जैसी मूत्र संबंधी समस्याएं विकसित हो सकती हैं, जो काफी तकलीफें पैदा कर सकती हैं। इसके कारण मूत्राशय, मूत्र पथ या किडनी संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं। एक बढ़े हुए प्रोस्टेट को ‘सौम्य प्रोस्टेटिक हाइपरप्लाशिया’ (BPH) कहा जाता है। पौरुष ग्रंथि का आकार बढ़ना कोई कैंसर संबधी समस्या नहीं होती और ना ही यह कैंसर होने के जोखिमों को बढ़ाती हैं। इस समस्या के लिए कई उपचार उपलब्ध हैं, जिनमें दवाएं, थेरेपी और सर्जरी आदि शामिल हैं। इन सभी विकल्पों में से आपके लिए सबसे बेहतर उपचार चुनने के लिए डॉक्टर आपके लक्षणों, बढ़ी हुई ग्रंथि का आकार, आपके स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं और आपकी प्राथमिकता पर विचार करते हैं।
प्रोस्टेट बढ़ने के लक्षण – Benign Prostatic Hyperplasia (BPH) Symptoms
इसके लक्षण व संकेतों में शामिल हो सकते हैं –
मूत्र धारा कमजोर या बधित होना (पेशाब करने के दौरान धारा बार-बार रुकना और शुरू होना)
पेशाब होने के अंत में बूंद-बूंद टपकना
निशामेह – नींद के दौरान बार-बार पेशाब आना
यूरिनरी रिटेंशन
मूत्र असयंमिता – अचानक से पेशाब को ना रोक पाना
पेशाब करने और स्खलन के बाद दर्द होना
मूत्र आवृत्ति – एक दिन में आठ या उससे ज्यादा बार पेशाब आना
मूत्र की तीव्र इच्छा – पेशाब को रोक पाने में अक्षमता
मूत्र प्रवाह शुरू करने में तकलीफ महसूस होना
पेशाब का रंग व गंध असाधारण प्रतीत होना
जब मूत्राशय पूरी तरह से खाली नहीं हो पाता, तो आपके मूत्र पथ में संक्रमण होने के जोखिम बढ़ जाते हैं। समय के साथ-साथ अन्य गंभीर समस्याएं भी विकसित हो सकती हैं, जिनमें मूत्राशय में पथरी, पेशाब में खून आना, असंयमिता और एक्यूट यूरिनरी रिटेंशन (पेशाब करने में असमर्थता)
डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
पेशाब करने में अचानक से असमर्थता (पेशाब बंद होना) महसूस होना एक मेडिकल इमर्जेंसी है, ऐसे में तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। अगर पेशाब में खून आ रहा है, तो डॉक्टर द्वारा ही उसकी जांच की जानी चाहिए, ताकि अन्य किसी गंभीर स्थिती का पता लगाया जा सके। कुछ दुर्लभ मामलों में मूत्राशय और गुर्दे में क्षति के कारण बीपीएच की समस्या हो सकती है।
पौरुष ग्रंथि बढ़ने के कारण – Enlarged Prostate Causes
यद्यपि इस समस्या का सटीक कारण अज्ञात है, उम्र के साथ मेल हार्मोन में कमी होना इस समस्या को विकसित करने वाला एक प्रमुख कारक माना जाता है।
परिवार में किसी को प्रोस्टेट संबंधी समस्या होना या वृषण संबंधी किसी प्रकार की असामान्यता भी प्रोस्टेट का आकार बढ़ने के जोखिमों को बढ़ावा देती है।
जिन पुरूषों के कम उम्र में ही वृषणों को निकाल दिया जाता है, उनको यह समस्या नहीं होती है।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ पुरूषों में प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया (BPH) की स्थिति को सामान्य मान लिया जाता है, 80 की उम्र के बाद ज्यादातर वृद्ध पुरूषों को बीपीएच सिंड्रोम हो जाता है।
अपने जीवनकाल के दौरान पुरूष टेस्टोस्टेरॉन (मेल हार्मोन) और छोटी मात्रा में एस्ट्रोजन (फीमेल हार्मोन) का उत्पादन करते हैं। जैसे ही पुरूषों की उम्र बढ़ने लगती है, खून में सक्रिय टेस्टोस्टेरॉन की मात्रा घटने लगती है, जिससे एस्ट्रोजन का अनुपात अधिक हो जाता है। पौरुष ग्रंथि में एस्ट्रोजन की मात्रा में वृद्धि उन पदार्थों की गतिविधि बढ़ा देते हैं, जो पौरुष ग्रंथि की कोशिकाओं में वृद्धि करते हैं।
प्रोस्टेट का आकार बढ़ने के जोखिम कारक –
नीचे दिए गए कारकों से जुड़े पुरूषों में पौरुष ग्रंथि का आकार बढ़ने की समस्या विकसित होने की संभावनाएं अधिक होती हैं, जैसे –
कुछ मेडिकल स्थितियां जैसे, हृदय रोग, रक्त संचार संबंधी रोग, मोटापा, टाइप 2 डायबिटीज,
शारीरिक व्यायाम में कमी
स्तंभन दोष
40 साल की उम्र के लोग या और अधिक बूढ़े पुरुष।
अगर परिवार में पहले किसी को यह समस्या पहले हुई हो।
प्रोस्टेट बढ़ने से कैसे रोकें – Prevention of Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
प्रोस्टेट का आकार बढ़ने के कुछ मामले उम्र के साथ सामान्य हो जाते हैं। लक्षणों को कम करने के लिए कुछ सावधानियों तथा तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे –
अगर आप किसी भी प्रकार की दवा लेते हैं, तो डॉक्टर से उस बारे में बात करें, क्योंकि कुछ ऐसी दवाएं हो सकती हैं, जो इस समस्या को बढ़ावा देती हैं। ऐसी स्थिति में डॉक्टर आपकी खुराक को एडजस्ट कर सकते हैं या दवाएं लेने के लिए आपका समय बदल सकते हैं। कई बार डॉक्टर अन्य दवाओं को भी लिख देते हैं, जो मूत्र संबंधी कम समस्याएं उत्पन्न करती हैं।
शाम के समय तरल पदार्थों का सेवन कम करें, खासकर कैफीनयुक्त और अल्कोहल वाले पेय पदार्थ। ये दोनो पदार्थ मूत्राशय की मांसपेशियों की टोन को प्रभावित करते हैं और ये दोनो पदार्थ किडनी को मूत्र उत्पादन करने के लिए उत्तेजित करते हैं, जिससे रात के समय अधिक पेशाब आता है।
कुछ पुरूष जब बैचेन या तनावग्रस्त होते हैं तो वे और अधिक बार-बार पेशाब करते हैं, इस प्रकार के तनाव को कम करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम किया जा सकता है और ध्यान लगाने जैसी तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है।
जब आप बाथरूम में जाते हैं, तो मूत्राशय को खाली करने के लिए पेशाब करने में थोड़ा अधिक समय लगाने की कोशिश करें। ऐसा करने से बार-बार बाथरूम जाने में कमी की जा सकती है।
पौरुष ग्रंथि बढ़ने का परीक्षण – Diagnosis of Enlarged Prostate
डॉक्टर आपसे आपके लक्षणों से जुड़ी जानकारी पाने के लिए कुछ सवाल पूछकर परीक्षण की शुरूआत कर सकते हैं। प्रारंभिक परीक्षण में अक्सर निम्न को शामिल किया जाता है –
ब्लड टेस्ट – इस टेस्ट के रिजल्ट से किडनी संबंधी समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।
प्रोस्टेट स्पेसीफिक एंटीजन (PSA) बल्ड टेस्ट – पीएसए एक द्रव पदार्थ होता है, जो पौरुष ग्रंथि में बनता है। अगर पौरुष ग्रंथि का आकार बढ़ता है, जो पीएसए का स्तर भी बढ़ जाता है। हालांकि, पीएस का स्तर संक्रमण, सर्जरी या प्रोस्टेट कैंसर के कारण भी बढ़ सकता है।
डिजिटल रेक्टल परीक्षण – इसमें डॉक्टर मरीज के मलाशय में उंगली डालते हैं और प्रोस्टेट ग्रंथि के आकार की जांच करते हैं।
यूरिन टेस्ट – इस टेस्ट में पेशाब के सैंपल का विश्लेषण किया जाता है, और अन्य स्थितियों की जांच की जाती है, जिनके लक्षण बीपीएच से मिलते हैं।
उसके बाद डॉक्टर अन्य टेस्ट करवाने का सुझाव भी दे सकते हैं, जिनकी मदद से प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़े हुऐ आकार की पुष्टी की जाती है और अन्य स्थितियों का पता लगाया जाता है। इन टेस्टों में निम्न शामिल हैं –
पोस्टवॉइड अवशिष्ट मात्रा परीक्षण (Postvoid residual volume test) – इस टेस्ट की मदद से यह पता लगाया जाता है कि आप अपना मूत्राशय पूरी तरह से खाली कर पा रहे हैं या नहीं। इस टेस्ट के लिए पेशाब करने के बाद मूत्राशय में कैथेटर लगा दिया जाता है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि पेशाब करने के बाद, आपके मूत्राशय में कितना मूत्र बचा हुआ है।
24 घंटे वॉइडिंग डायरी – अगर आपके रोजाना के मूत्र का एक तिहाई हिस्सा रात में ही आता है, तो मूत्र की आवृत्ति और मात्रा को रिकॉर्ड करना सहायक हो सकता है।
यूरिनरी फ्लो टेस्ट – इसमें आपको एक रिसेप्टेकल (Receptacle) में पेशाब करना पड़ता है, जो एक मशीन से जुड़ा होता है, यह मशीन पेशाब की मात्रा और उसके बहाव की क्षमता को मापती है। अगर आपकी समस्या में सुधार आ रही है या वह और गंभीर होती जा रही है, तो इस टेस्ट की मदद से यह पता लगाया जा सकता है।
यदि आपकी स्थिति अधिक जटिल है, तो आपके डॉक्टर निम्न सुझाव दे सकते हैं –
ट्रांसयूरेथरल रिसेक्शन ऑफ प्रोस्टेट (TURP)
एक लाइट वाली स्कोप (Lighted scope) को मूत्रमार्ग में डाला जाता है और सर्जन बाहरी प्रोस्टेट के पूरे भाग को हटा देते हैं। टीयूआरपी आमतौर पर लक्षणों से जल्दी राहत देता है, ज्यादातर लोगों में प्रक्रिया के बाद तुरंत तेज पेशाब का बहाव बनता है। टीयूआरपी के बाद आपको अपने मूत्राशय को खाली करने के लिए अस्थायी रूप से कैथेटर का इस्तेमाल करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
प्रोस्टेट में ट्रांसयूरेथरल चीरा (TUIP) –
लाइट वाली स्कोप को मूत्रमार्ग में डाला जाता है और सर्जन पौरुष ग्रंथि में दो छोटे कट लगाते हैं, जिससे पेशाब को मूत्रमार्ग से जाने में आसानी हो जाती है। यदि आपकी पौरुष ग्रंथि का आकार थोड़ा ही बढ़ा हुआ है या ज्यादा बड़ा नहीं है, तो यह सर्जरी आपके लिए एक विकल्प हो सकती है।
ट्रांसयूरेथरल माइक्रोवेव थर्मोथेरेपी (TUMT) –
इस प्रक्रिया में डॉक्टर एक विशेष प्रकार की इलेक्ट्रोड (Electrode) को मूत्रमार्ग के माध्यम से पौरुष ग्रंथि क्षेत्र तक पहुंचाते हैं। इलेक्ट्रोड की माइक्रोवेव एनर्जी पौरुष ग्रंथि के बढ़े हुऐ क्षेत्र के अंदरुनी हिस्से को नष्ट करके पौरुष ग्रंथि के आकार को छोटा कर देती है और मूत्र प्रवाह को सरल बना देती है। टीयूएमटी किसी हिस्से के लक्षणों को ही कम कर पाती है और इसके द्वारा दिए गए रिजल्ट को सामने आने में समय लग सकता है। आमतौर पर इस प्रक्रिया का इस्तेमाल छोटे प्रोस्टेट के लिए और विशेष परिस्थितियों में किया जाता है, क्योंकि फिर से उपचार करना आवश्यक हो सकता है।
ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड – इस टेस्ट के दौरान मरीज के मलाशय में एक अल्ट्रासाउंड प्रोब को डाला जाता है, जिससे प्रोस्टेट ग्रंथि का मूल्यांकन किया जाता है और उसके आकार की जांच की जाती है।
प्रोस्टेट बायोप्सी – इसमें ट्रांसरेक्टल की मार्गदर्शन की मदद से एक सुई के द्वारा प्रोस्टेट में से ऊतक का सैंपल लिया जाता है। ऊतक की जांच करना डॉक्टरों को समस्या का परीक्षण करने और प्रोस्टेट कैंसर आदि समस्याओं का पता लगाने में मदद करता है।
यूरोडायनेमिक एंड प्रैशर फ्लो अध्ययन – इसमें एक कैथेटर को मूत्रमार्ग से होते हुऐ मूत्राशय में लगा दिया जाता है। उसके बाद पानी या कुछ दुर्लभ मामलों में हवा को धीरे-धीरे मूत्राशय में भेजा जाता है। उसके बाद डॉक्टर मूत्राशय के दबाव को मापते हैं और यह निर्धारित करते हैं कि आपके मूत्राशय की मांसपेशियां कितने अच्छे से काम कर पा रही हैं।
सिस्टोस्कोपी – यह एक लचीली ट्यूब के जैसा उपकरण होता है, जिसके अगले सिरे पर लाइट और कैमरा लगे होते हैं। इस उपकरण की मदद से डॉटर मूत्रपथ और मूत्राशय के अंदर देख पाते हैं। यह टेस्ट करने से पहले मरीज को एक लॉकल अनेस्थेटिक दी जाती है।
ट्रांसयूरेथरल नीडल एब्लेशन (TUNA) –
यह एक आउटपेशेंट प्रक्रिया होती है, जिसमें मरीज को अस्पताल में रुकने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रक्रिया में मरीज के मूत्रमार्ग में स्कोप डाला जाता है, जिससे प्रोस्टेट ग्रंथि में सुई डालने में मदद मिलती है। सुई के माध्यम से रेडियो किरणों को भेजा जाता है जिसकी मदद से पेशाब में रुकावट पैदा करने वाले प्रोस्टेट ऊतकों को नष्ट किया जाता है।
लेजर थेरेपी –
एक उच्च उर्जा वाली लेजर की मदद से अधिक बढ़े हुऐ प्रोस्टेट के ऊतकों को नष्ट कर दिया जाता है। लेजर थेरेपी आमतौर पर उसी समय लक्षणों को कम कर देती है और बिना लेजर वाली प्रक्रियाओं के मुकाबले इसमें साइड इफेक्ट के जोखिम भी कम होते हैं। लेजर थेरेपी उन पुरूषों के लिए की जाती है, जिनपर किसी अन्य प्रोस्टेट प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया गया हो।
लेजर थेरेपी के विकल्पों में निम्न शामिल हो सकते हैं:
ओपन प्रोस्टेटक्टोमी –
इस प्रक्रिया में सर्जरी करने वाले डॉक्टर पेट के निचले हिस्से में एक चीरा लगाते हैं, जिसकी मदद से वे पौरुष ग्रंथि तक पहुंच पाते हैं और ऊतकों को निकाल देते हैं। ओपन प्रोस्टेटक्टोमी को आमतौर पर तब किया जाता है, जब आपका प्रोस्टेट का आकार अधिक बढ़ गया हो, मूत्राशय में क्षति या अन्य जटिलताएं विकसित हो गई हों। इस प्रक्रिया के लिए अस्पताल में रुक कर सर्जरी करवाने की आवश्यकता पड़ती है, इस प्रक्रिया के साथ खून चढ़ाने जैसे जोखिम भी जुड़े होते हैं।
एब्लेटिव प्रोसीजर – मूत्र प्रवाह को बढ़ाने के लिए यह प्रक्रिया प्रोस्टेट के बढ़े हुऐ ऊतकों का वाष्पीकरण करके उन्हें हटा देती है।
इनूक्लिएटिव प्रोसीजर – यह प्रक्रिया पेशाब में ब्लॉकेज पैदा करने वाले सभी प्रोस्टेट ऊतकों को हटा देती है और उन ऊतकों को फिर से विकसित होने से रोकती है। प्रोस्टेट में कैंसर या अन्य स्थितियों का पता लगाने के लिए निकाले गए ऊतकों की जांच की जाती है। यह प्रक्रिया ओपन प्रोस्टेटक्टोमी (Open prostatectomy) के जैसी प्रक्रिया होती है।
क्या बढ़ा हुए प्रोस्टेट अपने आप ठीक हो जाता है? –
Does Benign Prostatic Hyperplasia (BPH) Go Away On Its Own
यदि बढ़े हुए प्रोस्टेट के लक्षण सामान्य हों, तो इलाज की जरूरत नहीं होती है। साथ ही इससे कोई परेशानी भी नहीं होती है। मामूली बिनाइन प्रास्टेटिक ह्यपरप्लेसिया (बीपीएच) से ग्रस्त लगभग एक-तिहाई पुरुषों में पाया गया है कि उनका बढ़ा हुआ प्रोस्टेट बिना इलाज के ही ठीक हो जाता है।
अगर बढ़े हुए प्रोस्टेट का इलाज न किया जाए, तो क्या होगा? –
What Happens If Prostatic Hyperplasia (BPH) is left untreated
अगर बढ़े हुए प्रोस्टेट का समय पर इलाज न किया जाए, तो मूत्रमार्ग में ब्लॉकेज पैदा हो सकती है और मरीज के लक्षण गंभीर रूप ले सकते हैं। इसके अलावा, निम्न प्रकार की समस्याएं भी हो सकती हैं –
मूत्र पथ संक्रमण
ब्लैडर में पथरी
मूत्र में रक्त आना
ब्लैडर से किडनी की तरफ मूत्र के वापस आने से किडनी क्षतिग्रस्त भी हो सकती है
बढ़े हुए प्रोस्टेट की समस्या में क्या नहीं पीना चाहिए? –
What Should You Not Drink With an Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
अगर कोई व्यक्ति बढ़े हुए प्रोस्टेट की समस्या से ग्रस्त है, तो उसे निम्न प्रकार के पेय पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए –
कैफीन – कैफीन मूत्रवर्धक के रूप में कार्य करता है। इससे मरीज को बार-बार मूत्र आने की समस्या हो सकती है। इसलिए, अपनी डाइट से कॉफी, ग्रीन टी, ब्लैक टी, चाय, सॉफ्ट ड्रिंक्स व सोडा को कम कर देना चाहिए।
शराब – शराब पीने से भी शरीर में मूत्र का निर्माण अधिक मात्रा में होता है। इसलिए, शराब से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
डेयरी – दूध जैसी डेयरी उत्पादों का भी जितना हो सके कम सेवन करना चाहिए।
बढ़े हुए प्रोस्टेट के लिए सबसे अच्छा फल कौन-सा है? –
What is the best fruit for Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
प्रोस्टेट की समस्या को दूर करने के लिए जामुन, स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी, रास्पबेरी और ब्लैकबेरी सबसे अच्छे फल हाेते हैं. इनमे एंटीऑक्सीडेंट के गुण पाए जाते हैं, जो फ्री रेडिकल्स को बाहर निकालने में मदद करते हैं. इसके अलावा, खट्टे फल जैसे कि संतरा, नींबू और अंगूर में विटामिन-सी पूरी मात्रा में मौजूद होता है, जो प्रोस्टेट ग्रंथि की रक्षा करता है.
क्या बढ़े हुए प्रोस्टेट में केला फायदेमंद है? –
Is Banana Good for Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की साइट पर उपलब्ध एक रिसर्च के अनुसार, केले के छिलके से निकलने वाले मेथनॉल के अर्क में 5 अल्फा रिडक्टेस होता है। यह 5 अल्फा रिडक्टेस प्रोस्टेट के उपचार में उपयोगी हो सकता है।
एक अन्य शोध के अनुसार, केले के फूल का अर्क बढ़े हुए प्रोस्टेट के कारण होने वाली सूजन की समस्या को कम कर सकता है।