मधुमेह (मीठा जहर) (Diabetes Mellitus)
परिचय मधुमेह आजकल एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या बना हुआ है पहले यह रोग केवल व्रद्धावस्था के रोगियों को प्रभावित करता था परन्तु अब ऐसा नही है अब वृद्ध रोगी तो इससे प्रभावित होते ही है इसके अतिरिक्त प्रत्येक आयुवर्ग प्रभावित होता है इस रोग का पता अचानक तब चलता है जब व्यक्ति किसी कारण से अपना रक्त परीक्षण कराता है अथवा जब उसे बेहोशी की अवस्था में भर्ती किया जाए और जाँच में उसकी शर्करा बढ़ी हुई मिले |
मधुमेह क्या है ?
मधुमेह अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों का सर्वप्रमुख रोग है जिसमे रक्त ग्लूकोज स्टार लंबे समय तक बढ़ हुआ रहता है अग्न्याशय की लैंगर हैंस दीपिकाओ की बीटा कोशिकाओं से इन्सुलिन के स्त्राव में कमी स्त्राव के बंद हो जाने अथवा इन्सुलिन के असामान्य होने के कारण रक्त ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है लंबे समय तक यदि मधुमेह का उपचार न हो तो अनेक जटिलताए उत्पन्न हो जाती है जैसे उच्च रक्तचाप हदयाघात व्रक्क निष्क्रियता ट्रक विकार तांत्रिक सम्बन्धी विकार संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाना नपुंसकता आदि
मधुमेह का वर्गीकरण (Classification of Diabetes)
मधुमेह को कारण के आधार पर दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है – प्राथमिक मधुमेह
प्रकार 1 मधुमेह स्वप्रतिरक्षा में विकार के कारण यह रोग उत्पन्न होता है इसके भी दो प्रकार होते है –
• इन्सुलिन निर्भर मधुमेह (Insulindependant diabetes mellitus-IDDM)
• अस्थायी इन्सुलिन निर्भर मधुमेह (Transient non-insulin dependent diabetes mellitus-NIDDM)
प्रकार 2 मधुमेह- स्वप्रतिरक्षा का विकार इस प्रकार के मधुमेह का कारण नहीं होता है बल्कि इसमें इन्सुलिन ग्राही अंग प्रभावित होते है जिससे इन्सुलिन अपना प्रभाव नही दिखा पाता । इसे पुनः तीन उपवर्गों में बाटा गया है –
इन्सुलिन अनिर्भर मधुमेह (Non-Insulin dependent diabetes Mellitus- Types-2 NIDDM)
अस्थाई इन्सुलिन निर्भर मधुमेह (Transient insulin dependant diabetes mellitus Type2 IDDM)
अल्पवयस्को की परिपक्वावस्था सम्बन्धी मधुमेह | ( Maturity onset diabetes of young) द्वितीयक मधुमेह
इस प्रकार के मधुमेह में रोग का कारण स्पष्ट होता है और आसानी से पता लगाया जा सकता है इसके कई कारण होते है जैसे-
औषधि या रासायनिक पदार्थो से उत्पन्न मधुमेह | (Drug or chemical induced DM)
अग्न्याशयिक विकार से उत्पन्न मधुमेह | (Pancreatic disorder induced diabetes)
हार्मोन अनियमितताओं से उत्पन्न मधुमेह | (Diabetes due to hormonal irregularities)
जनन तंत्र के विकारो से उत्पन्न मधुमेह । (Diabetes due to genital syndrome)
इन्सुलिन ग्राही अंगो के विकारो से उत्पन्न मधुमेह । (Dibetes due to defect in insulin receptor)
विविध कारण (Miscellaneous)
इन्सुलिन पर निर्भर मधुमेह ( Insulin dependent diabetes Mellitus (IDDM)
इसप्रकार का मधुमेह अग्न्याशय में उपस्थित लैंगर हैंस द्विपिकाओ की बीटा कोशाओं के नष्ट होने से होता है बीटा कोशाओं के नष्ट होने का प्रक्रम स्वप्रतिरक्षा विकार के कारण होता है यह विकार विषाणुओ के संक्रमण या किसी अन्य कारण से हो सकता है ।
IDDM से जुड़े हुए तथ्य इस प्रकार है –
IDDM के रोगी 30 वर्ष से कम आयु के होते है ।
पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होते है ।
IDDM आनुवांशिक संकेतक (Genetic Markers)….HLADR3 & DR4 तथा HLA B8 & B15 सम्बन्धित होती है । IDDM के रोगियों में जटिलताए अधिक होती है सर्वाधिक खतरे वाली आपातकाल स्थिति होती है यदि तुरंत उपचार न मिले तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है । इन्सुलिन पर अनिर्भर मधुमेह Non insulin dependant Diabetes Mellitus (NIDDM) संख्या के अनुसार NIDDM, IDDMकी अपेक्षा अधिक रोगियों को प्रभावित करती है इससे प्रभावित रोगी 40 वर्ष से अधिक आयु के होते है इसप्रकार के मधुमेह में बीटा कोशा इन्सुलिन का स्त्राव सामान्य या अधिक करती है परन्तु लक्ष्य कोशाओं में स्थित इन्सुलिन ग्राही अंग असामान्य होते है जिससे इन्सुलिन के बढे होने पर भी कोशाएं ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है इसका पता अचानक ही लगता है ।
इस रोग का प्रक्रम बहुत धीरे-धीरे होता है इसमें कीटो एसिडोसिस नही होती बल्कि उसके स्थान पर हाईपरओसमोलर नान कीटोटिक कोमा हो जाता है मोटापा व अत्यधिक आरामदेह जीवन पद्रति NIDDM पैदा होने का महत्वपूर्ण कारण है ।
IDDM व NIDDM के रोगियों में अंतर
IDDM
रक्त में इन्सुलिन या तो होता ही नही है या फिर स्तर बहुत कम होता है ।
इस प्रकार का मधुमेह कम रोगियों में होता है परन्तु जटिलताए अधिक है व डाइबिटिक कीटो एसिडोसिस बहुत अधिक होती है ।
ग्लुकागोन बढ़ जाता है ।
इन्सुलिन थिरैपी बहुत लाभकारी सिद्र होती है ।
सल्फोनिल यूरिया उपयोगी सिद्र नही होती है ।
रोगी की आयु 30 वर्ष से कम
रोगी सामान्य शरीर का दुबला पतला होता है
रोग से सम्बन्धित जीन क्रोमोसोम न. 6 पर होता है ।
NIDDM
यह अधिकांश रोगियों में पायी जाती है परन्तु जटिलताए बहुत कम होती है इस रोग में हाईपरऑस्मोलर नान कीटोटिक कोमा हो जाता है ।
ग्लूकागोन घट जाता है ।
इन्सुलिन थिरैपी कभी कभी लाभकारी होती है और कभी नही भी सिद्र होती है ।
सल्फोनिल यूरिया उपयोगी सिद्र होती है ।
आयु 40 वर्ष से अधिक ।
रोगी मोटा होता है ।
रक्त में इन्सुलिन स्तर सामान्य अथवा बढ़ा हुआ होता है ।
रोग सम्बन्धी कोई विशेष जीन नही है ।
मधुमेह का रोगजनन (Pathogenesis of Diabetes Mellitus)
भोजन में लिए गए कार्बोहाइड्रेट पाचन द्वारा मोनोसैक्राइट्स जैसे ग्लूकोज फ्रक्टोज गैलेक्टोज जाईलोज आदि में परिवर्तित हो जाते है ।
कार्बोहाइड्रेट्स मोनोसैकेराइड्स
ग्लूकोज व अन्य मोनोसैक्राइड्स छोटी आंत में रक्त में अवशोषित होकर शरीर की विभिन्न कोशाओं तक पहुच जाते है कोशिकाए विभिन्न जैविक क्रियाओ में खर्च ऊर्जा को ग्लूकोज से प्राप्त करती है । ग्लूकोज से यह ऊर्जा इन्सुलिन की सहायता से प्राप्त होती है क्योंकि इन्सुलिन कोशाएं ग्लूकोज के उपयोग को बढ़ती है यह इन्सुलिन अग्न्याशय की लैगरलैंस द्वीपिकाओ में उपस्थिति बीटा कोशाओं से स्त्रवित होता है । यदि किसी रोग औषधि या अन्य कारण से इन्सुलिन का स्त्राव कम हो जाय या बंद हो जाय तो कोशाएं इन्सुलिन की कमी या अनुपस्थिति के कारण ग्लूकोज का उपयोग नही कर पाती और रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है ।
इसके अतिरिक्त कभी कभी इन्सुलिन का स्त्राव तो सामान्य होता है परन्तु कोशाओं के इन्सुलिन ग्राही अंग असामान्य होते है फलस्वरूप शरीर की कोशाएं ग्लूकोज का उपयोग नही कर पाती जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है रक्त में ग्लूकोज स्तर के बढ़ने मधुमेह के लक्षण प्रकट होने लगते है ।एक निश्चित स्तर तक ही गुर्दे रक्त में उपस्थित शर्करा को सहन कर पाते है यह सीमा होती है इससे अधिक स्तर बढ़ने पर ग्लूकोज मूत्र के साथ उत्सर्जित होने लगता है जिसे ग्लाईकोसुरिया कहते है | मूत्र के साथ ग्लूकोज के अधिक उत्सर्जित होने से मूत्र का परासरण दाब बढ़ जाता है जिससे मूत्र के साथ अधिक पानी जाता है और मूत्र की मात्र बढ़ जाती है अधिक मूत्र का निर्माण होने व उसके उत्सर्जन होने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिसे पूरा करने हेतु रोगी अधिक पानी पीता है –
मधुमेह से उत्पन्न जटिलताए (Complications caused by Diabetes)
हृदय रोग मधुमेह के रोगी अधिकतर हृदय रोग से भी पीड़ित होते है इनमे अधिकांशतः उच्च रक्तचाप के रोगी होते है और ह्दयघात के प्रति बहुत संवेदी होते है ।
नेत्र रोग मधुमेह के रोगियों का एक बड़ा अनुपात नेत्र के पर्दे रेटिना के रोग का शिकार हो जाता है और अधिक समय हो जाने पर दृष्टि पूर्णतः चली जाती है ।
गुर्दे का फेल हो जाना मधुमेह के रोगियों में उच्च रक्तचाप एवम हदय के कमजोर हो जाने से गुर्दो में रक्त का परवाह काफी कम हो जाता है और रक्त चाप व मधुमेह का उपचार न होने पर गुर्दो के फेल होने की सम्भवना काफी बढ़ जाती है ।
तन्त्रिकीय विकार पहले तो मधुमेह के रोगी को तंत्रिकाओ के अनेक रोग हो जाते है इसके
यदि लंबे समय तक मधुमेह के रोगी को उपचार न मिले तो रक्त में ग्लूकोज के बढे हुए स्तर के कारण रोग की जटिलताए उत्पन्न होना प्रारम्भ हो जाती है जिसका विवरण इस प्रकार है संक्रमण (Infection) स्वप्रतिरक्षण काफी कम हो जाता है और रोगी बार बार संक्रमण से प्रभावित होने लगता है तथा घाव भरने में बहुत समय लगता है ।
अतिरिक्त उच्च रक्तचाप के कारण मष्तिष्क की रक्त वाहिनियों से रक्तस्त्राव की सम्भावना बढ़ जाती है |
मधुमेह जनित तन्त्रिकीय विकार में हाथ पेअर सुन्न रहते है जिससे यदि चोट लगती है तो पता नही लगता है अनेक अल्सर बन जाते है और कभी कभी तो पैर तक कट जाते है । नपुंसकता मधुमेह के रोगियों में नपुंसकता तन्त्रिकीय विकार का ही एक भाग है शिश्न का ढीला पड़ जाना इसके सवहन तन्त्र में नाइट्रिक आक्साइड न बन पाने के कारण होता है ६०- ९०% तक मधुमेह के रोगी नपुंसकता के शिकार होते है लेकिन मधुमेह रोग की अवधि और नपुंसकता का आपस में कोई सम्बन्ध नही है ।
मधुमेह कीटोएसिडोसिस (Diabetic Ketoacidosis)
मधुमेह की यह जटिलता जीवन के लिए काफी घातक सिद्र होती है इसमें रोगी बेहोश हो जाता है मधुमेह कीटो एसिडोसिस दो महत्वपूर्ण कारको से होती है – (i) इन्सुलिन की कमी (ii) ग्लुकागोन की अधिकता ।
रुधिर में ग्लूकोज की अत्यधिक कमी (Severe Hypoglycemia) मधुमेह के रोगी में हाइपोग्लाइसीमिया की समस्या भी अक्सर होती रहती है ऐसा तब होता है जब मधुमेह का रोगी किसी कारण इन्सुलिन या औषधि की बिना भोजन लिए ले लेता है फलस्वरूप अधिकांश ग्लूकोज प्रयुक्त हो जाता है और रुधिर में ग्लूकोज की बहुत कमी हो जाती है एक निश्चित सीमा तक शरीर हाइपोग्लाइसीमिया सहन करता है उसके पश्चात बेहोशी आने लगती है क्योंकि मष्तिष्क कोशाएं केवल ग्लूकोज का ही उपयोग करती है ।
हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण दिमाग का खालीपन भूख तेज लगना व्यवहार में गड़बड़ी पेशीय पीड़ा अकेलापन उल्टी शारीरिक कमजोरी दृष्टि धूमिलता दो – दो दिखाई पड़ना मानसिक भम्र बेहोशी और मिर्गी के झटके तीव्र हृदयगति ।
इन्सुलिन की कमी रोगी द्वारा इन्सुलिन न लेने के कारण हो सकती है अथवा शारीरिक तनाव या मानसिक तनाव के कारण जैसे ही रोगी इन्सुलिन लेना बंद कर देता है रक्त में ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है तथा शारीरिक या मानसिक तनाव की उपस्थिति में इपिनेफ्रिन स्त्रवित होता है जो ग्लुकागोन के लिए प्रेरक का काम करता है । ग्लूकेगोन २,६ बाइफास्फेट्स को कम करके ग्लाइकोलिसिस को कम करता है तथा ग्लुकोनियोजेनेसिस को बढ़ाता है जिससे रुधिर में ग्लूकोज स्तर बहुत बढ़ जाता है बढ़ा हुआ ग्लूकोज मूत्र के साथ उत्सर्जित होता है जिससे मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है और रोगी में पानी की कमी हो जाती है – उग्र निर्जलीकरण ।
इसके साथ ही एडीपोज टिशू तथा यकृत में परिवर्तन होते है स्तर बढ़ जाता है और अधिक बॉडीज का निर्माण होता है – डायबेटिक कीटोएसिडोसिस के रोगी को बेहोशी आ जाती है यह एक आपातकाल स्थिति होती है इस स्थिति में रोगी को अस्पताल में भर्ती करके तुरंत उपचार करना चाहिए।
हाइपोग्लाइसीमिया तथा डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (DKA ) में अंतर
हाइपोग्लाइसीमिया
(i) रोगी ने खाना नही खाया अत्यधिक इन्सुलिन या मधुमेहरोधी औषधि ली है या अत्यधिक व्यायाम किया है
(ii) रोगी के साथ वाले बताते है कि इन्सुलिन
या
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस
रोगी या तो संक्रमित है अथवा इन्सुलिन
या मधुमेह रोधी बहुत कम या नही ले रहा है ।
कई दिनों से बीमार था धीरे-धीरे बेहोश
मधुमेह रोधी औषधि से पहले रोगी पूर्णतया हो गया ।
स्वस्थ था ।
(iii) तेज पसीना कम्पन तीव्र हृदयगति चिड़चिड़ापन, अधिक भूख लगना सिरदर्द झटके ।
(iv) सामान्य रक्तचाप ।
(v) मूत्र में ग्लूकोज या कीटोन अनुपस्थित
(vi) ब्लड ग्लूकोज का निम्न स्तर
(vii) कीटोन की गंध नही आती ।
(viii) कुशमोल ब्रीदिंग नही होती है ।
(ix) रोगी को ग्लूकोज से बहुत लाभ पहुचता है
(x) निर्जलीकरण पेट दर्द उलटी पेशियों में दर्द
(xi) निम्न रक्तचाप |
(xii) मूत्र में ग्लूकोज व कीटोन बढ़ी हुई मात्रा में उपस्थित
ब्लड ग्लूकोज का उच्च स्तर रोगी में कीटोन की गंध आती है । कुशमोल ब्रीदिंग DKA का प्रमुख लक्षण है
रोगी को इन्सुलिन इंजेक्शन सोडाबाइकार्ब | इंजेक्शन तथा तरल से बहुत लाभ पहुचता है ।
हाइपरऑस्मोलर नानकीटोटोटिक कोमा मधुमेह रोग की यह जटिलता के रोगियों में होती है जब के रोगियों में इन्सुलिन की आंशिक कमी होती है तो वसा अपघटन अधिक नही होता जिससे रक्त में कीटोन का स्तर नही बढ़ता परन्तु ग्लूकोज का स्तर बहुत बढ़ जाता है, इस जटिलता में प्यास न लगने के कारण रोगी पानी नही पीता जिससे शरीर में पानी की बहुत अधिक कमी हो जाती है और रोगी को साँस लेने में भी कठिनाई होती है तथा वह बेहोश हो जाता है ।
इसके प्रमुख लक्षण है-
रोग में गम्भीर निर्जलीकरण के सभी लक्षण उपस्थित होते है –
चेतना में कमी से लेकर पूर्ण बेहोशी । ग्राम निगेटिव सेप्सिस तथा निमोनिया प्लाज्मा ग्लूकोज की मात्रा से अधिक तरल की कमी
ब्लड यूरिया नाइट्रोजन की वृद्धि
अस्थाई हेमिप्लीजिआ ।
जैकसनियन सीजर्स
मधुमेह के रोगी का नैदानिक उपागम (Clinical Approach to the patient of Diabetes) मधुमेह के रोगी का नैदानिक उपागम निम्न प्रकार है –
(i) नैदानिक इतिहास (Clinical History)
(ii) शारीरिक परिक्षण (Physical Examination)
(iii) प्रयोगशाला परिक्षण (Lab investigation) नैदानिक इतिहास
लक्षण मधुमेह के निम्न प्रमुख लक्षण होते है अधिक प्यास लगना अधिक मूत्र आना अधिक भूख लगना मूत्र के साथ ग्लूकोज जाना । इन लक्षणों के बारे में रोगी स्वयम ही बताता है की उसे अधिक भूख प्यास लगती है और पेशाब बार बार आती है मूत्र में ग्लूकोज के बारे में रोगी से पूछना होता है की मूत्र में चीटिया तो नही लगती ।
सम्बन्धित कारक –
एल्कोहल एल्कोहल अधिक लेने से मधुमेह रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है
क्योंकि यह अग्न्याशय व यकृत को क्षति पहुचाता है ।
कुपोषण कुपोषण में बीटा कोशाओं का कार्य प्रभावित होता है और मधुमेह होने की सम्भावना बढ़ जाती है
तनाव किसी भी प्रकार का निरन्तर तनाव मधुमेह की सम्भावना को बढ़ता है जैसे संक्रमण शाल्य क्रिया मानसिक तनाव ।
रासायनिक पदार्थ एलोक्सैम कवक वैक्लोर स्ट्रेप्टोजोसिन आदि पदार्थ अग्न्याशय की बीटा कोशाओं को क्षति पहुचाते है और इनकी वजह से मधुमेह की सम्भावना बढ़ जाती है ।
उम्र उम्र से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि रोगी IDDM से अथवा NIDDM से पीड़ित है IDDM के रोगी अधिकांशतः ३० वर्ष से कम आयु के होते है और NIDDM के ४० वर्ष से अधिक आयु के होते है ।
जीवन प्रव्रति जो रोगी
अधिक आरामदायक जीवन व्यतीत करते है व्यायाम नही करते उनके NIDDM से पीड़ित होने की सम्भावना होती है ।
शारीरिक परीक्षण
नेत्राधार परिक्षण मधुमेह के रोगियों में नेत्रधार परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है जिसकी सहायता से मधुमेह के कारण होने वाले नेत्र विकार का पता चलता है रेटिनोपैथी रोगियों के अंधे होने का महत्वपूर्ण कारण है यह दो प्रकार की होती है बैकग्राउंड रेटिनोपैथी प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी
बैकग्राउंड रेटिनोपैथी के लक्षण रक्त कोशिकाओं की पारगम्यता में वृद्धि और उनका फूलना माइक्रो एन्युरिज्म ए. वी. शर्ट्स डाट व ब्लाट हैमरेज काटनवूल स्पॉट्स तथा हार्ड एक्सुडेट्स |
प्रोलिफरेटिव रेटिनोपैथी के लक्षण नयी रक्तवाहिकाओं का बनना विट्रिअस हैमरेज आँख के पर्दे का अलग होना
रेटिनोपैथी व्रद्ध रोगियों में शीघ्र फैलती है जबकि वयस्क काफी समय तक इससे बचे रहते है ।
वजन जिन रोगियों का वजन सीमा से अधिक होता है मोटापे के शिकार होते है इन्हें होने की सम्भावना अधिक होती है
मधुमेह के रोगी की शारीरिक परिक्षण द्वारा जटिलताओं के बारे में पता लगाते है विशेषतः हाथ पैरो के अल्सर देखते है तथा तापमान व दर्द संवेदनाओ को टैस्ट करते है इससे न्यूरोपैथी के बारे में पता लग जाता है इसके साथ निम्न आवश्यक तथ्यों पर ध्यान देते है ।
रक्तचाप मधुमेह के अधिकांश रोगी उच्च रक्तचाप के शिकार होते है ।
प्रयोगशाला परीक्षण
मधुमेह रोग के निदान के लिए मूत्र व रक्त शर्करा परीक्षण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है इसके अतिरिक्त अन्य परीक्षण भी है जो मधुमेह से होने वाली जटिलताओं के बारे में जानकारी देते है|
मधुमेह के रोगी का मूत्र परीक्षण
नल क्षमता की सीमा तक व्रक्क ग्लूकोज पर नियंत्रण रखते है और मूत्र में उत्सर्जित नही होने देते इससे अधिक रक्त ग्लूकोज होने पर ग्लूकोज मूत्र के साथ उत्सर्जित होता है जिसका मूत्र परिक्षण द्वारा पता लग जाता है प्रयोगशाला में बेनीडिक्ट एजेंट फेहलिंग एजेंट व सल्फोसैलिसिलिक अम्ल की सहायता से मूत्र में ग्लूकोज का पता लगाते है विलयन के रंग के परिवर्तन के आधार पर तो मूत्र में ग्लूकोज की मात्रा का भी लगभग अनुमान लगा लिया जाता है । इसके अतिरिक्त अस्पताल में या घर पर मधुमेह के रोगी एक स्टिक से मूत्र ग्लूकोज का परीक्षण करते है इसे यूरोडायस्टिक्स कहते है इसके द्वारा मूत्र में ग्लूकोज की अनुमानित मात्रा का पता लगा लेते है डायस्टिक्स की शीशी पर Nil Trace, +,++,+++,++++ अंकित होते है और उनके निश्चित रंग होते है ।
इसके अनुसार पहले डायस्टिक्स को मूत्र में भिगोकर निश्चित समय तक रखकर उसमे जो रंग आता है उसे शीशी पर अंकित रंगों आदि से मिलाते है जिस रंग से डायस्टिक्स का रंग मिलता है मूत्र में उतना ही ग्लूकोज होता है ।
परिक्षण द्वारा यदि यह पता चले की रोगी के मूत्र में ग्लूकोज है तो निश्चित ही यह मधुमेह के कारण होता है जब तक उसके लिए किसी अन्य कारण का पता न लगे ।
५-१० % रोगियों में मधुमेह होने पर भी मूत्र परिक्षण में ग्लूकोज का पता नही लगता है ऐन रोगों को फाल्स निगेटिव कहते है इसके विपरीत कुछ रोगी मधुमेह से पीड़ित नही होते है और उनके मूत्र में ग्लूकोज का पता लगता है ।
मूत्र परीक्षण में ग्लूकोज के अतिरिक्त कीटोन्स का पता भी करते है कीटोन्स का परीक्षण प्रयोगशाला में विभिन्न रीजेन्ट्स कर सकते है इसके अतिरिक्त अस्पताल या घर पर डायस्टिक्स से इसका परिक्षण करते है |
कुछ डायस्टिक्स पर ग्लूकोज के अतिरिक्त कीटोन्स के लिए भी स्ट्रिप होती है उसके रंग में होने वाले परिवर्तन को शीशी के रंगों से मिलाने पर कीटोन्स की मात्रा का पता लगा सकते है इसके लिए भी शीशी पर Nil, Trace, +++,+++,++++ अंकित होता है ।
शीघ्र
यदि मूत्र में ग्लूकोज के साथ साथ कीटोन्स भी है तो निश्चित ही रोगी मधुमेह से पीड़ि तो है ही साथ ही उसे कीटोएसिडोसिस है और उसकी हालत काफी गम्भीर है क्योंकि डायबिटिक कीटोएसिडोसिस एक आपातकाल स्थिति होती है जिसमे रोगी को बहुत अस्पताल में भर्ती करके उपचार की आवश्यकता होती है । डायस्टिक्स द्वारा मूत्र परीक्षण का नैदानिक महत्व भी है तो क्योंकि जब रोगी को इन्सुलिन देना होता है, तो यूरोडायस्टिक्स द्वारा ही उसकी ग्लूकोज या ग्लूकोज व कीटोन्स की जाँच की जाती है अन्यथा परीक्षण के लिए बार बार रक्त निकालने से रोगी को परेशानी का सामना करना पड़ता है ।
तत्पश्चात चिकित्सक की सलाह अनुसार Trace,+,++,+++ ++++ पर निश्चित मात्रा में इन्सुलिन दिया जाता है ।
मूत्र प्रोटीन मूत्र में ग्लूकोज व कीटोन्स के अतिरिक्त प्रोटीन का परीक्षण किया जाता है मूत्र में कम मात्रा में प्रोटीन होना मूत्र मार्ग संक्रमण तथा अधिक मात्रा में प्रोटीन गुर्दो के खराब
होने की ओर संकेत करता है ।
रक्त परीक्षण
मधुमेह रोग में रक्त परीक्षण द्वारा ही मधुमेह का अंतिम निदान होता है रक्त परीक्षण निम्नवत है –
F.B.G.(Fasting Blood Glucose) उपवास के बाद रुधिर ग्लूकोज सामान्य ७५-११५ mg% |
R.B.G.(Random Blood Glucose) किसी भी समय लिया गया रुधिर ग्लूकोज | P.P.B.G.(Post Prandial Blood Glucose) खाने के बाद ७५gm ग्लूकोज लेने के २ घंटे बाद लिया गया रुधिर ग्लूकोज १४०mg% से कम |
I.B.G.(Intermediate Blood Glucose) ७५ gm ग्लूकोज लेने के बाद अथवा खाना खाने के बाद २ घंटे के अंदर लिया गया रुधिर ग्लूकोज ।
उपरोक्त रक्त ग्लूकोज परीक्षणों की सहायता से मधुमेह रोग का निदान किया जाता है । मधुमेह से सम्बन्धित कारक जो विकृति दर व मृत्यु दर को बढाते है
मधुमेह के रोग की शीघ्र शुरुआत (Early starting of diabetes)
मोटापा (Obesity)
मधुमेह रोग से लम्बे समय से पीड़ित होना (Prolonged illness)
ग्लाइकोसिलेटिड हीमोग्लोबिन का बहुत अधिक बढ़ा होना (Highly increased glycosylated haemoglobin)
मूत्र में प्रोटीन को अधिक उत्सर्जित होने के कारण रक्त में प्रोटीन की कमी (Hypoprotenaemia due to proteinurea)
रक्त में वसा की अधिक मात्रा (Hyperlipidaemia)
उच्च रक्तचाप (Hypertension)
मधुमेह के उपचार में इन्सुलिन थिरैपी का उद्देश्य
(Aim of Insulin Therapy in the Treatment of Diabetes)
मधुमेह के उपचार का उद्देश्य यह है कि रोग के लक्षण समाप्त हो साथ स्वस्थ रहे और रोग की जटिलताओं से बचा रहे ऐसा तभी सम्भव है जब रोगी का रक्तशर्करा स्तर सामान्य रहे अतः उपचार करते समय हमारी कोशिश रहती है कि रक्तशर्करा स्तर को इन्सुलिन थिरैपी की सहायता से सामान्य रेंज की सीमा में ही नियंत्रित रखा जाय गर्भावस्था में मधुमेह के रोगी का रक्तशर्करा स्तर सामान्य सीमा में रखकर शिशु व माता में मधुमेह के कारण होने वाले अनेक विकारो तथा असामयिक म्रत्यु से बचा जा सकता है ऐसी माताओ को गर्भाधान से पहले ही रक्तशर्करा नियंत्रित रखना प्रारम्भ करना चाहिए इसीप्रकार वे रोगी जिनमे किडनी ट्रांसप्लांट होना है उनमे भी रक्त शर्करा स्तर को सामान्य सीमा में रखे और ट्रांसप्लांट होने के बाद इसे सही बनाए रखे तो इस स्थिति में भी जटिलताओं से बचा जा सकता है ।
मधुमेह के रोगियों में रक्तशर्करा स्तर की सीमा निम्नलिखित आकड़ो पर नियंत्रित करनी चाहिए |
FBG आदर्श सीमा 70-100 mg % इसे रोगी 60-130 mg% तक सहन कर सकता है |
खाने से पहले 70-100 mg% जो 60-130mg% तक रखी जा सकती है ।
PPBG 75 ग्राम ग्लूकोज लेने या खाने के १ घंटे बाद 160 mg /100 ml से कम • 3 बजे सुबह 65mg / 100ml से अधिक
इन्सुलिन थिरैपी द्वारा रक्त शर्करा को निश्चित सीमा में नियंत्रित रखना होता है साथ ही हाइपोग्लाइसीमिया से बचाना अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि हाइपरग्लाइसीमिया की जटिलता लम्बे समय में प्रकट होती है जबकि हाइपोग्लाइसीमिया से शीघ्र ही रोगी की जान जा सकती है |
मधुमेह का उपचार निर्देशित करते समय विशेष सावधानिया
(Special Pracautions for the Direction of the Treatment of diabetes Mellitus) मधुमेह के रोग का उपचार प्रारम्भ करते समय निम्न सावधानिया ध्यान में रखनी चाहिए मधुमेह के रोगियों को या उनके साथ वालो को शर्करा टैस्ट तथा यूरिन कीटों टैस्ट करना सिख देना चाहिए जिससे यूरोडायस्टिक्स व ग्लुकोडायस्टिक्स की सहायता से अपने दोनों टैस्ट कर सके तथा उन्हें इन टेस्टों के महत्व के बारे में भी बता दे जिससे वे इनका रिकार्ड रख सके ।
जिन्हें इन्सुलिन की आवश्यकता है उन्हें इन्सुलिन सिरिंज द्वारा इन्सुलिन की मात्रा अपना तथा इन्सुलिन का त्वचा के नीचे इंजेक्शन लगाना सिखा देना चाहिए उन्हें अधिक व्यायाम व कार्य के अनुसार इन्सुलिन डोज को
एडजस्ट करना भी बता दे जिससे वे हाइपरग्लाइसीमिया व हाइपोग्लाइसीमिया से बच सके रोगियों व उनके साथियो को इसके बारे में सीखा कर ही रोग पर अच्छा नियंत्रण रखा जा सकता है ।
मधुमेह के रोगी अपना एक कार्ड रखे जिस पर उनका पता फैमिली चिकित्सक का पता मधुमेह के लिए लिए प्रयुक्त औषधियां व इन्सुलिन की मात्रा अंकित हो । इसके अतिरिक्त यदि रोगी किसी अन्य रोग जैसे उच्च रक्त दाब का शिकार हो तो वह भी अंकित होना चाहिए ।
रोगियों को चिकित्सक जो बात सिखाते है अधिकांश रोगी उसे सीखते अधिकांश रोगी उसे सीखते है और पालन करते है और इस प्रकार घर पर ही वे अपना उपचार जारी रख सकते है परन्तु जिन रोगियों को इन्सुलिन की आवश्यकता होती है उन्हें लगभग नित्य अपने चिकित्सक को दिखाना चाहिए और यदि ऐसा सम्भव नही हो तो उनका उपचार अस्पताल में भर्ती करके प्रारम्भ करना चाहिए इसके अतिरिक्त हाइपरऑस्मोलर नान कीटोटिक कोमा के रोगियों का भी उपचार अस्पताल में भर्ती करके ही करना चाहिए |
मधुमेह की औषधि या इन्सुलिन के साथ भोजन अवश्य ले इन्हें खाली पेट कभी न ले |
मधुमेह के रोगी का उपचार प्रारम्भ करने के पश्चात फोलोअप
मधुमेह के रोगी को एक बार उपचार प्रारम्भ करने के बाद निश्चित समयांतराल पर चैक अप के लिए जाना चाहिए क्लीनिक पर फोलोअप व चैकअप के लिए आने वाले रोगी की निम्न बातें चैक करे |
हाथ पैरो में सुन्नापन तो नही है पैरो में अल्सर तो नही है ।
नेत्र परीक्षण रोगी की दृष्टि क्षमता का परीक्षण करते है और उसके नेत्राधार का परीक्षण करके रेटिनोपैथी या अन्य विकार का पता लगाकर उसका उपचार करते है ।
मूत्र परीक्षण मूत्र में ग्लूकोज कीटोन व एल्ब्यूमिन का पता करने के लिए मूत्र परीक्षण करते है ।
वजन चैक करे कि वजन कंही बढ़ तो नही नियंत्रित करने की सलाह दे ।
रक्तचाप रोगी का बढ़ा हुआ तो नही है करे ।
हाइपोग्लाइसीमिया का विवरण रोगी से पूछे कि उपचार के दौरान वह हाइपोग्लाइसीमिया में तो नही गया अथवा उसे तो नही हुआ रक्तशर्करा स्तर एक निश्चित सीमा पर रहा या नही ।